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बादल / ओम पुरोहित ‘कागद’
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असीम ऊंचे
आकाश में
क्यूं मरता है भार
पानी को उठाए
आओ बादल !
आ
करूं हल्का
थोड़ा झुक
मरुधरा पर !
भर-रीत
रीत-भर की
रीत पाल
प्रीत पाल
बनेगी बात
हो जाएगी
रेत की जात !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"