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बाबुल सुनो / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
कोख से बेटी कहे, बाबुल सुनो।
जन्म लेने दो करूँ मैं प्रार्थना॥
अंकुरित हूँ मैं हुई जब प्रीत के आधार से।
क्यों रहूँ वंचित भला फिर जन्म के अधिकार से।
अंश मुझमें है तुम्हारी प्रीत का।
मैं तुम्हारे प्रेम की हूँ कल्पना॥
आप भागीरथ बनो, दे दो धरा पर अवतरण।
दृष्टि पर से दो हटा अब पुत्र मोह का आवरण।
कुछ तो है अधिकार मेरा आप पर।
आपकी बाँहों में चाहूँ खेलना॥
भाग्य में जो दुख लिखे वह हैं अमिट मिटते नहीं।
जो अँधेरे हों बदे मुझको मिटा हटते नहीं।
गोद में मुस्काऊँगी जब आपकी।
देखना मिट जायेगी हर वेदना॥