बिहारी / दिनकर कुमार
जन्म से यह सम्बोधन मेरे लिए
पिघला हुआ शीशा है
मेरे कानों में सुलगता हुआ
मेरे सीने में उबलता हुआ
अश्वेत की तरह
अछूत की तरह
अँग्रेज़ीराज में घोषित अपराधी कौम की तरह
बिहारी का सम्बोधन
चाबुक की तरह मेरे वजूद को
लहूलुहान करता है
देश जबकि नस्लों का अजायबघर बन गया है
श्रेष्ठ नस्लों के लिए मेरी बिहारी नस्ल
उपहास का विषय बन गया है
ग़रीबी, पिछड़ापन, अंधविश्वास
जातिगत टकराव, निरक्षरता, बेकारी
बिहारी नस्ल की परिभाषा बन गई है
श्रेष्ठ नस्लों की निगाह में बिहार एक नरक है
जहाँ से लाखों लोग पलायन और केवल पलायन
कर रहे हैं
महानगरों और अमीर प्रांतों में पशुओं की तरह
श्रम कर रहे हैं और बदले में घृणा और केवल घृणा
पा रहे हैं
जन्म से यह सम्बोधन मेरे लिए एक
अश्लील-सी गाली है
जिसे सुनते हुए मैं शर्म से सिर झुका लेता हूँ
जिस तरह मेरे लाखों भाई परदेश
में सिर झुकाते हैं ।