भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीज / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ढ़कीजग्यो
कळायण स्यूं सूरज
उतरग्यो
दिन रो मूंडो,
अंधेरीजग्यो आभो
आ‘र बैठग्या
आळां में पंखेरू
पण सुण‘र छांटा रो
बोलाळो
जागग्यो धरती में
सूतो सिरजण !