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बुढ़ापा / सुधा चौरसिया
Kavita Kosh से
बच्चे जब नीड़ से
उड़ जाते हैं
उस समय तक तो
हमारे पंख
हवा से खौफ खाने लग जाते हैं
हमें हमारे कंधों का
दर्द बहुत याद आता है
जब ढ़ोया था उन्हें वर्षों
हमारे कंधों ने
दिशाएँ दिग्भ्रमित
होने जब लगती हैं
हमारी अंगुलियों की जकड़न
हमें बहुत याद आती है
जब चलाया था उन्हें
डगमगाकर गिरने से बचाने को वर्षों
हमारे आँसू को
उनका खिलखिलाना याद आता है
जब हँसाते थे उन्हें
नित नए-नए तरीकों से
जागती है जब रात भर
टिक-टिककर घड़ियां हमारे साथ
गाकर लोरियाँ उनको थपथपाना
बहुत याद आता है...