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बुलडोज़र / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
वह कनसास से चला
और देखते ही देखते
उसने सारी दुनिया नाप ली
उसका वास्ता कृषि तक न रहा
और फैल गई विध्वंस से जुड़े
उसके सरोकारों की दुनिया
वह सर्वत्र नज़र आया,
मैदानों, खदानों, खेतों, बस्तियों
और रणभूमियों में भी
उसने ढहाया और ख़ुश हुआ,
उसने उखाड़ा और झूम उठा,
उसने ज़मींदोज़ किया और गुर्राया
उसके वास्ता किसी से नहीं,
सिवाय मालिक के
देखते ही देखते
इस दुनिया में वह हुआ
अपने मालिक का पसन्दीदा ग़ुलाम ।