भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैम / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीपळ रा पीळा पांन
झड़ता देख
धोळै केसां नै कुचरतो
सळां भरी चामड़ी आळो मिनख
कित्तो बेबस हुय जावै
आ सोच-
आंधी रा थपेड़ा
जड़ामूळ सूं उखाड़ नाखैला
जूनै बिरछां नै ।