भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भविष्य / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
अब भी बहुत-कुछ हो सकता है
तुम अपने हाथों में
मुट्ठी-भर मिट्टी उठा सकते हो
और उसमें देख सकते हो
अपना भविष्य।