भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूलना / अच्युतानंद मिश्र
Kavita Kosh से
एक डूबते हुए आदमी को
एक आदमी देख रहा है
एक आदमी यह दृश्य देख कर
रो पड़ता है
एक आदमी आँखें फेर लेता है
एक आदमी हड़बड़ी में देखना
भूल जाता है
याद रखो
वे तुम्हें भूलना सिखाते हैं ...