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मद्धिम उजास / नीरजा हेमेन्द्र

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ज्यों-ज्यों
व्यतीत होती जा रही थी रात
और सो रहा था
पूरा का पूरा शहर
कोहरे की सफेद चादर में
कोहरे की चादर
घनी और घनी होती जा रही थी
इतनी घनी कि स्पश्ट कुछ भी नहीं था
विस्तृत कोहरे में समुद्र में डूबते-उतराते
मछलियों-से वृक्ष और घर
सहसा निकल पड़ते हैं बाहर
आखिर वे कब तक रह सकते हैं
 अँधेरे कोहरे की
घनी चादर के नीचे
सूर्य का मद्धिम उजास
कोहरे को तोड़ने लगा है।