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मधु घर / पुष्पिता
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तुम्हारे होने के बाद
अपने भीतर
सूँघ सकी
खाली जमीन की
रूँधी-कसक
जहाँ उग आया है बसंत
मह-मह आकाश
और उड़ान की फड़फड़ाहट।
तुम्हारे शब्दों ने
मेरे भीतर खोला
पारदर्शी निर्झर
प्यास के विरुद्ध...।
तुम्हारे होने भर से
जान सकी
फूलों में कहाँ से आती है सुगंध
कैसे आती है कोमलता
धूप उन्हें
कैसे तबदील करती है रंगमय
मन
कैसे बदल जाता है वृक्ष में
तितली
कहाँ से लेती है लुभावने रंग
मधुमक्खी क्यों बनाती है
शहद का घर
साख में टाँगकर...।
तुम्हारी आँखों में
खुद को देखने के बाद जाना
नदी क्यों बहती रहती है
रात-दिन बगैर रुके
समय की तरह...।