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मनुष्य-पशु / रामनरेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
बक सा छली है कोई, गाय सा सरल कोई,
चूहे सा चतुर कोई, मूढ़ कोई खर सा।
काक सा कुटिल मधु-मक्खी सा कृपण कोई,
मोर सा गुमानी कोई लोभी मधुकर सा॥
श्वान सा खुशामदी कबूतर सा प्रेमी कोई,
स्यार सा है भीरु कोई वीर है बबर सा।
कैसा है विचित्र यह मानव-समाज, कोई
तेज तितली सा कोई सुस्त अजगर सा॥