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मन-वांछित / महेन्द्र भटनागर

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जब-तक

जीना चाहा

हमने;

ख़ूब जिये !

मानों

वर्षा में भी

जलते रहे दिये !


नहीं किसी की

रही कृपा,

जूझे -

अपने बल पर

विश्वास किये !