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मरीचिका / अग्निपुष्प
Kavita Kosh से
हमर देशक संविधान
किछु लोकक
सुविधा लेल बनाओल गेल छैक
आ
जनतंत्र कखनो संसद मे
आ कखनो सड़क पर
खाली कनस्तर जकाँ
गुड़कि रहल छैक।
तीस बरखक बाद
संसद में दोसर स्वतंत्रता
घोषित कयल गेल छैक
फेर एक
लाशक अम्बार पर
तबक साटि देल गेल छैक।
फोटो बदलैक संग
फ्रेम नहि बदलि जाइ छैक
मुखिया बदलि गेला सँ
गाम नहि बदलि जाइ छैक
सरकार बदलला सँ
व्यवस्था नहि बदलि जाइ छैक
एहि संविधान केँ अहाँ
कखन धरि संजोगने रहब
जनतंत्रक जाल कहिया धरि बुनैत रहब
संसद सँ बाहर
आबि जेबाक लाथ
कहिया धरि धरैत रहब
गामक बसात बदलि गेल छैक
पतझड़क बाद
अमलतासक पात बदलि गेल छैक।