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मलबा / सुदीप बनर्जी
Kavita Kosh से
समतल नहीं होगा कयामत तक
पूरे मुल्क की छाती पर ऐला मलबा
ऊबड़-खाबड़ ही रह जाएगा यह प्रसंग
इबादतगाह की आख़िरी अज़ान
विक्षिप्त अनंत तक पुकारती हुई ।