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माँ / निशान्त जैन
Kavita Kosh से
बूँद प्यार की बस उड़ेलती,
आँगन की फुलवारी माँ।
खेल-खेल में मुन्नू की है,
बनती रोज सवारी माँ।
मुश्किल चाहे झंझट कितने,
गाती राग मल्हारी माँ।
बिन नागा के सुबह-सवेरे,
देती रोज बुहारी माँ।
थककर भी एक शिकन न लाए,
जादू भरी पिटारी माँ।
मुश्किल बिन माँ के एक पल भी,
सचमुच जग से न्यारी माँ।
जग सारा हो एक तरफ पर,
एक अकेली भारी माँ।