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मित्र (5) / सत्यनारायण सोनी
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यह जो खत
तुमने उठाया है,
परदेश गए
मेरे मित्र का
आया है।
इसके हरफ-हरफ में
वह नहीं,
उसका श्रम बोलता है।
सूंघो तो जरा,
पसीने की बू आएगी।
2004