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मिमता / कन्हैया लाल सेठिया

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जाणै
कीड़ी‘र
चीड़ी
कठैं है
बीं रो
बिल‘र आलो ?

ढलन्तै सूरज
कर‘र चुगो पाणी
टुर ज्यावै
आप आप रै
ठिकाणैं कानी !

इस्या किस्या
एनाण
सैनाण
जकां रै पाण
राखै ठाई ओलखाण ?

मनैं लागै
ममतालू आंख
कोनी चुकलण दै
जीव रा
पग‘र पांख !