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मुक्तक / दामोदर प्रसाद

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1
सात रंग के रंगल,
विहग अति सुन्नर,
चोंच उठा के देखे ,
ऊ मन के मुन्नर।
2
आस-पास के रंगत,
ओकर मन नञ भावै,
पंख फड़फड़ा के ऊ,
बजूद अप्पन बतावै।