मुज़रिम / स्वरांगी साने
वो कटघरे में थी
उससे पूछा जा रहा था
इतनी साँसें क्यों लेती हो
उसके होने का भार
क्यों वहन करे कोई
गीता पर हाथ रखे बिना भी
उसने सच कह दिया
कोई खास कारण नहीं उसके जीने का
‘तो मर क्यों नहीं जाती’
शायद ‘करमजली’ भी कहना चाहते थे
कठघरे के बाहर के लोग
ये भी हुलस कर बोल उठी
चाहे तो सज़ा दे सकते हैं
मौत की सज़ा
जो दी जाती है किसी हत्यारन को
उसने एक-दो बार नहीं
हज़ारों-हज़ार बार
मारा है अपनी इच्छाओं को
गला घोंटा है उनका
तीखे वार किए हैं उन पर
और तो और
ऐसा करते हुए
वो हँसती रही बेसाख्ता
अरे ये तो भद्र महिला है
माफ़ कर दिया उसे
उसके होने के ज़ुर्म से
लेकिन जोड़ दिया यह भी
कि आज से उसे ऐसे जीना है
कि वो हो ही नहीं किसी परिदृश्य में
उसे चलना है
इस तरह कि
दूसरों की आवाजाही बाधित न हो
नकाब दर नकाब
खुद को छिपाना है
यदि हो कहीं
काला और सफ़ेद रंग
तो उसे घुल जाना है काले रंग में
लोगों की भीड़ में दूर चुपचाप खड़े रहना है
हाट नहीं करना
बाज़ार नहीं जाना
उसे करते रहने हैं सारे काम
घर-बाहर के
पर आवाज़ नहीं होनी चाहिए
ज़रा भी
किसी को असुविधा न हो
इसकी पूरी सावधानी बरतनी है
चाहे तो वो जी सकती है
पर ऐसे कि
जैसे वो है ही नहीं
कहीं पूरी दुनिया में
और हाँ
यदि
अदृश्य हो सके तो
और भी बेहतर है।