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मुस्कुराहटें / फ़रीद खान
Kavita Kosh से
हर कोई मुस्कुराता है
अपने अपने अर्थ के साथ।
बच्चा मुस्कुराता है,
तो लगता है, वह निर्भय है।
प्रेमिका मुस्कुराती है,
तो लगता है, उसे स्वीकार है मेरा प्रस्ताव।
दार्शनिक मुस्कुराता है, तो लगता है,
व्यंग्य कर रहा है दुनिया पर।
भूखा मुस्कुराता है, तो लगता है,
वह मुक्त हो चुका है और पाने को पड़ी है
उसके सामने पूरी दुनिया।
जब अमीर मुस्कुराता है,
तो लगता है, शासक मुस्कुरा रहा है,
कि देश की कमजोर नब्ज उसके हाथ में है,
कि जब भी उसे मजा लेना होगा,
दबा देगा थोड़ा सा।