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मूरत्यां / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
अचरज हुवै
जद मूरत्यां
मोह नीं राखै।
नीं राखै नीं सई
नीं है इण में सांस
सांस हुवै तो आस हुवै
म्हैं भी नीं राखूं, इण सूं आस।
अबकी मेळै सूं
फकत म्हैं नीं लावूं
मोलाय'र अै मूरत्यां
बिना चाबी आळी।
म्हैं नीं जाणूं
मूरत्यां घड़णियै नै
बो नीं जाणै
आं मूरत्यां रो नांव
उणरै जिको बिकै
बो ई संचो