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मेरा गाँव / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
गांव से आए हो
बताओ
क्या हाल हैं
मेरे गांव के
क्या अब भी
वैसा ही है
मेरा गांव!
पगडंडिया
अब भी
लेती होगी
धने पेड़ों की छांव
जिस पर लड़ते होंगे
ग्वालों के पांव।
आज भी
आती होगी
गांव में
सरसों के फूलों की महक
जब आता होगा
बंसत को झोंका
मेरे गांव में।
अब भी
नव यौवन सा
संवर जाता होगा
जब बरसात में
चिड़िया चहकती हैं
और मोर
तानता है छतर।
अब भी
ऋतुएं
जीवन को संवारने
पसारती होंगी पांव
और
थिरक उठते होगे
मोरो जैसे
युवाओं के पांव।
बताओं ना
क्या अब भी
वैसा ही है
मेरा गांव।
या
वह भी हो गया है
ठीक शहर जैसा
बिना सिर
बिना पांव!