भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी उम्र / प्रज्ञा रावत
Kavita Kosh से
मेरी उम्र कटती है
जैसी गुज़रती हों माँ
मुझमें से
पेड़ पर धीमे-धीमे
पकते फल की तरह
जो अब गिरा... अब गिरा।