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मेरे दोस्त / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
बहुत सारे दोस्त रहे मेरे
कुछ उन कौओं की तरह थे
जो वक्त आने पर
शोर मचा सकते थे हित में मेरे
लेकिन भीतर से उतने ही कमजोर
हवा की थोड़ी सी धमक से
उड़ जाया करते थे मुझे छोड़कर।
कुछ वैसे भी रहे
चील की तरह दूर से ही
मुझ पर दृष्टि जमाए हुए
जब भी मौका मिला
छीनकर ले गए खाना मेरा।
और कुछ थे बेहद ऊबाऊ
सुअर की थोथी नाक की तरह
हमेशा मुँह दिखलाते हुए
कुछ ही थे अच्छी बातें कहने वाले
कहकहे लगाने वाले थे ज्याद
लेकिन सभी दोस्त ही तो थे
इसलिए गले लगाए रखना
जरूरी था उन्हें ।