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मेरे साथ / मनीष मूंदड़ा
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					शुक्र है उजालों के सहारे हैं 
कुछ बिलकुल करीब 
तो कुछ दूर ही सही 
मगर आज कई साथ हैं मेरे
 
कभी खुद को बदला 
कभी सफ़र बदला 
कभी वह बदले 
तो कभी समय बदला
बमुश्किल ढूँढा हैं इन साथियों को 
एक उम्र लग गयी इन्हें पाने को 
आज कई साथ हैं मेरे 
अकेला नहीं हूँ मैं 
आज कई हाथ है मेरे।
 
	
	

