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मेरे हाथों में न होती लेखनी / नागराज मंजुले / टीकम शेखावत
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मेरे हाथो में न होती लेखनी
तो....
तो होती छीनी
सितार...बाँसुरी
या फ़िर कूंची
मैं किसी भी ज़रिए
उलीच रहा होता
मन के भीतर का
लबालब कोलाहल..!
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत