भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोमिन/ कैलाश वाजपेयी
Kavita Kosh से
पूजाघर पहले भी होते थे
हत्याघर भी
पहले होते थे,
हमने यही प्रगति की है.
दोनों को एक में मिला दिया.