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मोलाइजे / दीनू कश्यप
Kavita Kosh से
दक्षिणी अफ़्रीका के युवा कवि मोलाइजे को फाँसी दिए जाने पर
भाई
तुम जीत गए हो
जीत गई है
तुम्हारी निर्भीक कविता
तुम्हारी देह से टकराती
चाबुक की आवाज़
मुक्तिगीत बन गई है
हर खित्ते में शोषित
बिरादर भाई की।
हल्की-सी खरोंच से भी
परेशान होने वाले
अम्मा-बाबा
इस परोसी गई मौत पर
क्रान्ति-गीत दोहराते निकले हैं
जेल से बाहर
जोहान्सबर्ग की गलियों में
आज हर अश्वेत माँ
गर्वित महसूस कर रही है
पोस कर उदर में नवशिशु
हर नवशिशु में
क्रान्ति-विचार की तरह तुम्हें
मोलाइजे भाई
इस बीमार सदी में
जब-जब तानाशाह ने
बम्दूक उठाई है
ईमानदार प्रतिबद्ध कविता
शेर की मानिंद गुर्राई है
तुम जीत गए हो
जीत गई है
तुम्हारी निर्भीक कविता