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मोह-माया / महेन्द्र भटनागर

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सोनचंपा-सी तुम्हारी याद साँसों में समायी है !

हो किधर तुम मल्लिका-सी रम्य तन्वंगी,
रे कहाँ अब झलमलाता रूप सतरंगी,

मधुमती-मद-सी तुम्हारी मोहनी रमनीय छायी है !

मानवी प्रति-कल्पना की कल्प-लतिका बन
कर गयीं जीवन जवा-कुसुमों भरा उपवन,

खो सभी, बस, मौन मन-मंदाकिनी हमने बहायी है!

हो किधर तुम, सत्य मेरी मोह-माया री
प्राण की आसावरी, सुख धूप-छाया री

राह जीवन की तुम्हारी चित्रसारी से सजायी है !