भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोह / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
मेह होने पर
मोह अंकुराता है
धरती से
ग्रहस्थि से !
मोह
जन्मता है
अदृश्य
पीठ पीछे
इस लिए चल
अभी
सफ़र शेष है !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"