भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौक्तिक / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
मौक्तिक
तुम्हारे मन के
एक कोने में
बाँध दिया था
आँचल
कुछ मोती लपेट कर
मैंने,
तुम एक-एक कर
तोड़ते रहे बँधाई,
मुक्ति की चाह में
तुमने खोल दिया बंधन
उलट दिया दामन
और लो!
सारे मोती
बिखर गए
टप-टप-टप-टप॥