भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युग्म / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
चारों ओर फैली
मरुभूमि रेतीली
बुझते दीपक लौ-सी
भूरी
पिंगल।
पीत-हरित
जल-रहित
- ढलती उम्र
- मरणासन्न !
- ढलती उम्र
लेकिन
अनगिनती
लहराते ... हरिआते
मरुद्वीप !
- कँटीले
- पत्ते रहित
- पनपते पेड़ —
- जीवन-चिन्ह
- पताकाएँ !
- कँटीले
जलाशय —
आशय ... जीवन-द
- प्राणद !
- प्राणद !