युवकसँ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
आइ परीक्षा दिवस तुलायल,
अन्धकार युगयुगक बिलायल,
बढ़ल प्रकाश दिशा-विदिशा
अगजग प्रमुदित,
चुन-चुन चुन-मुन चुनचुना उठल
आत्मारूपी भारतक विहग।
की होयत प्रात,
उठि अओता दिनकर अम्बर मे?
देशक कण-कण की चमकि उठत?
नहि-नहि, किछु दिन धरि अछि विलम्ब,
दल बान्हि घटा कारी-कारी
अछि उमड़ि रहल
ओ घुमड़ि रहल अछि,
लय बिजुरिक तरुआरि
मनहिमन गुम्हड़ि रहल अछि।
सावधान भय जाउ,
अरे रे! पहुँचल प्रबल बिहाड़ि
भरल नभ,
धूलि-धूसरित प्रकृति
अहुरिया काटि रहल अछि,
आगाँ पैर उठयबासँ पहिने
सतर्क भय जाउ
धरातल फाटि रहल अछि।
कहबा लय हम छी स्वतन्त्र,
हमरे सभसँ संचालित अछि
सम्पूर्ण यन्त्र,
हमरे लोकनिक थिक
माटि, पानि, जल, थल, नभ
सकल सुखक साधन,
सभ किछु पर अछि अधिकार स्वतः
ई जन्मसिद्ध अधिकार,
एहि लय लड़ब, मरब,
मरि मरि कय
अपना अधिकारक रक्षा धरि
निश्चय करब,
लड़ब, निश्चय जीवन भरि लड़ब।
भला,
युगयुग सँ अविरल स्रोत प्रवाहित
विद्यापतिक मधुर स्वरसँ
सेवित, पूजित,
चन्दाक चन्द्रिकासँ धवलित,
मुरलीधरसँ मन-मोद पाबि
एखनहुँ शिथिला मिथिला प्रमुदित,
सीतारामक पद-विन्यासेँ
जन-कण्ठ-कण्ठ सँ प्रतिध्वनित,
कविशेखर बदरीनाथ रचित
अनुपम कविता-कानन कुसुमित,
किरणक मृदुकिरणेँ आलोकित।
सुमन सौरभसँ अति सुरभित,
मधुपक मधुगुंजन-अनुगुंजित,
यात्रीक रुचिर शब्दावलिएँ
नित नूतन भावेँ परिपूरित,
हरिमोहन-कृत मनमोहन पदसँ
सहजहि जन-मन आकर्षित
संस्कृतिक भित्ति
भाषा पर क्यो आक्षेप करत?
से सहब?
रहब कायर बनि?
त्यागब आश जीवनक?
वा त्यागब विश्वास जीवनक?
से कथमपि नहि होयत,
विरोधीवर्ग देलक भुतिआय
ताहिसँ गेलहुँ एते पछुआय,
आइ भ्रमवश यदि
खत्ता खाइ,
तखन कहबालय रहब स्वतन्त्र,
रहत नहि कतहु अपन अधिकार।
युवक!
आबहु तँ करू विचार,
जीवनक अछि नहि आन प्रकार,
उजड़ि नहि जाय
बसल संसार,
विनय तेँ छी करैत करबद्ध
रहू रक्षालय सभ सन्नद्ध