योजना / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
आइ पलखति नहि कनेको, पलक छति नहि आइ करबे
स्व-हित निहिते विश्व -हित चित भावनात्मक ऐक्य भवे।।1।।
एखन रुकवे नहि कवे! प्रतिभा प्रभावित भाववाही
आइ उपजेबे उसर, नहि भयक रौदी, लोभ दाही।।2।।
समय सम्हरि बजा रहल अछि, रीति काल लजा रहल अछि
कर्मपथ रथ जा रहल अछि, कवित प्रकृत राजा रहल अछि।।3।।
तखन घुरिअयबो उचित नहि, घूरि जयबो नहि उदेसे
घुमब धुरियैले पदेँ, मधु - कन चुनब देशे - प्रदेशे।।4।।
बोध बुद्धक लेब ढंगे, जिन-अहिंसा ब्रत प्रसंग
वैष्णवी संस्कार अंगेँ शैव दीक्षा शक्ति समेँ।।5।।
सम््रदाय सहाय दशनामी प्रणामी नहि उमगेँ
माम-भामक देव - देवी पुजक पुनि समयानुषमे।।6।।
गुरु सिखक बानी कृषानी, अहल्या - लक्ष्मीक राखी
मानसी-तुलसीक शुभ संकेत, सूर कवीर साखी।।7।।
पद्मिनीकेर रूप - दर्पण, योगिनी, मीराक अर्पण
रक्त-तर्पण आत्म - वलिदानीक, सन्तक सत् समर्पण।।8।।
माधवक साचिव्य शुचि, यौगन्धरायणि योजना लय
चंदवर संकेत, भूषण छन्द, पृथ्विक प्रेरणा लय।।9।।
पंचतन्त्रक नीति रस, चण्डेश्वरक स्वर सन्धि - विग्रह
चतरि अक्खर - खंभ विद्यापतिक कीर्तिलताक सग्रह।।10।।
दछिन दिग् - वाही पवन, पुलकेशि पुलकित कीर्ति राका
खारवेलहु क्षार - वारिधि पार कय, उत्कल पताका।।11।।
अनल प्रज्वल चोल - नृपकुल - चूल अरिदल तूल भस्मे
पाण्ड्यहुक पाण्डित्य रण-पाण्डव अरिक पुर रीति रस्मे।।12।।
पुरुषपुर प्रख्यात ‘पेशावर’ जकर यश नाम अंकित
जीत रण रणजीत पुनि निज कीर्ति गिरिगुरु शृंग लघित।।13।।
शाह पृथ्वी नयक पालक, गिरि विशृंखल शृंखला कसि
सभ महान समान मान्ये, दक्षिणोत्तर कुन्तला बसि।।14।।
बिशद वृत्त अतीत पट, चित्रित अनूप रूपे
कय रहल छी योजना निर्मित करब नव यश-स्तूपे।।15।।
कौकिलक जय भैरवी, बंकिमक वन्दे, मातरम्
रविक उच्छल जलधि उर जपि-मन्त्र मधुरं भारतम्।।16।।
समिधि सविधि जुटाय आ - हिम - सेतु होमक वेदिका
यज्ञ सारस्वत महाभारतक राजस सात्त्विका।।17।।
आइ फहरैवै पताका, कीर्ति राका दिग् - दिगन्तेँ
आइ झहरैबै सुधा रस, मरु-धरा उर्वर अनन्ते।।19।।
आइ लहरयबै लहरि दुग्धो -दधिक सर - सरि प्रबंधे
शक्ति शान्तिक रक्त क्रान्तिक भ्रान्ति ने रहते निबन्धे।।20।।
सेतुमँ हिम - केतु धरि पुरबी पुरीसँ द्वारका धरि
एकमेव परत्व - स्वत्वक तत्त्व उमड़ओ लहरि सबतरि।।21।।
अग्निवर्णा नभ त्रिवर्णा, विजय हेतुक केतु फहरओ
बिन्ध्य बन्धन, हिमक लंघन, सिन्धु मन्थन कर ने केओ।।22।।