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रंग / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
आज मैंने उसकी धड़कन में
खुद की धड़कन शामिल की
उनकी सांसो में मिलायी अपनी सांस
कोमल कथ्य भाषा-शैली में मूर्त्त हो उठा
असंख्य फूल खिल उठे इधर-उधर
गीत, गज़ल नज़्मों में बजने लगे झंकार
चतुर्दिक विस्तारित हुआ ऋतुराज
जीवन गतिशील और अधिक ऊर्जावान
बिंव व चित्रों से हटकर
रंग-बहुरंगी बिल्कुल चटक फितरत में
फैल गया सदियों के लिए