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रसात्मा / बसन्तजीत सिंह हरचंद
Kavita Kosh से
जब से तुम्हें देखा है ----
पूनमी चांदनी
बांहों में कसने को बेचैन ,
ऊर्ध्वभुज समुद्र की याद आती है .
उषा की आँखों में
एकटक आँखें डाले ,
विदेह सूर्यमुखी की याद आती है ,
फूलों की गालों का
रसात्मक चुम्बन लेती ,
अल्हड़ बौछारों की याद आती है .
तेरी पहली बार
हृदय की गीली घास पर ,
नंगे पाँव टहलना याद आता है .
मेरी लालायित इच्छा
तुम पर केन्द्रित हो जाती है ,
तड़पते प्राण
खिचने लगते हैं .
और तब
बार - बार याद आती है तू ,
तू जो इस कविता में
रसात्मा है ..
(समय की पतझड़ में ,१९८२)