भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजपत्रित अधिकारी / राजेन्द्र उपाध्याय
Kavita Kosh से
कितने ही लोगों को मैंने दिए
चरित्र प्रमाण पत्र
बगैर उनके चेहरे देखे
अपराधियों को भी बताया सच्चरित्र
जिसे कभी नहीं देखा
उसके बारे में लिखकर दिया
बरसों से जानता हूँ और मुहर लगा दी।
कितने ही लोगों को मैं जानता था दु: श्चरित्र है
पर लिखा सच्चरित्र है
जिनका कुलगोत्र कुछ पता नहीं था
उनको दिया जाति प्रमाण पत्र
मृत्यु प्रमाण पत्र अभिप्रमाणित किया उसका
जो अभी कल तक जीवित था।
उसकी विधवा लेती रही पेंशन माह दर माह
अपने यार के साथ मोटरसाईकिल पर बैठकर
आती थी वह दफ्तर।