रात-भर / राजेश जोशी
चान्द ने जाने क्या कहा झरने से
कि झरना हँसा रात भर
रात भर सारी घाटी में गूँजी
उसकी हँसी ।
चान्द ने जाने क्या कहा तारों से
कि तारे रोए रात भर
रात भर पता नहीं चला मुझे
पता चला सुबह
चान्द ने क्या कहा सपनों से रात भर
सपनों ने क्या कहा रात भर बच्चों से ।
इतनी आसान नहीं बात
कि बात खुल जाए रात में ही
इतनी सहज नहीं बात
कि सुबह होते ही झर पड़े
नीम के फूलों-सी ।
कई दिनों के ख़ाली उनके
पेटों में छुपी रहेगी बात
कई दिनों तक नहीं कहेंगे
बच्चे इस से उस से
कई दिनों तक ढकी रहेगी बात ।
फिर एक दिन बच्चे जाएँगे
मिट्टी में ढाँप-ढूँपकर
कहीं रख आएँगे वह बात ।
फिर एक दिन बोलेंगे पेड़
खोलेंगे भेद
राजा का, रात का
फिर एक दिन बोलेंगी चिड़ियाँ
खोलेंगी भेद
राजा का, रात का
’राजा के सर पर हैं कितने सींग’
हवाएँ बोलेंगी एक दिन
खोलेंगी भेद सब पर
सपनों ने क्या कहा बच्चों से रात भर ।
मारा जाएगा दुष्ट राजा एक दिन
फिर तारे कभी नहीं रोएँगे रात भर ।