भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
इतने घुप्प अंधेरे में
एक पीली पतंग
धीरे-धीरे
आकाश में चढ़ रही है.
किसी बच्चे की नींद में है
उसकी गड़ेरी
किसी माँ की लोरियों से
निकलती है डोर !