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रात में / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
कल मैं भी अधीर था
सोचता था
अपनी दुनिया क्यों पराई हुई
बिना बात के
क्या हुआ क्या हुआ जो
इतनी यहाँ नामधराई हुई
अपने लिए ही
अवसन्नता थी
स्थिति क्यों नहीं पा ली बराई हुई
अब जानके
राह में हूँ
जग में किसका घर और घराई हुई ।