भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात में / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कल मैं भी अधीर था

सोचता था

अपनी दुनिया क्यों पराई हुई


बिना बात के

क्या हुआ क्या हुआ जो

इतनी यहाँ नामधराई हुई


अपने लिए ही

अवसन्नता थी

स्थिति क्यों नहीं पा ली बराई हुई


अब जानके

राह में हूँ

जग में किसका घर और घराई हुई ।