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राष्ट्रगीत / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
वे नहीं गाते राष्ट्रगीत
महानता की फ्रेम में जड़े हुए
विजेता के अंदाज में, मंच पर खड़े हुए
‘सब एक साथ गाएँगे’, कहने पर भी
वे नहीं गाते राष्ट्रगीत!
भारत भाग्य विधाता.....वगैरह
इस अदा से सुनते हैं
मानो उनकी प्रशस्ति हो,
वे ही तो हैं जन-गण-मन अधिनायक,
जय-जयकार उचारें जिनका
समारोह के गायक!
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा.....
इस अंदाज से सुनते हैं
मानों उनकी ही रियासतें हों
विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा.......
उनके ही टीले हों, झरने हों झीलें हों!
मंचों पर बार-बार खड़े-खड़े विश्वास बढ़ता जा रहा है,
की बख्शीशे मांगता हुआ हिन्दूस्तान
उनकी ही जय गाथा गा रहा है!