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रास्ता / रश्मि प्रभा
Kavita Kosh से
लहरों ने राह रोकी,
आसमान ने बिजलियां बुन दीं,
हवा ने बार-बार पूछा
"क्या लौट जाना बेहतर नहीं होगा?"
पर कश्तियाँ चुप रहीं,
उन्होंने न कोई शिकायत की,
न ही कोई शोर किया
सिर्फ अपनी पतवारों में
ज़िद की एक गांठ कस ली ।
सूरज की आँखों में देख
कश्तियां बढ़ती गईं,
पीछे सिर्फ़ झाग
और तूफ़ान की थकी सांसें बची रहीं...
उनकी चाल में
न कोई संदेह था,
न ही कोई डर
था एक विश्वास
कि जब इरादा मज़बूत हो,
तो समंदर भी रास्ता देता है।