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रिश्ते / पवन चौहान
Kavita Kosh से
रिश्ते इतने कच्चे थे कि
कुछ टूट गए
कुछ बिखर गए
दूर-दूर तक
हवा की तरह
मैंने सींचा था
एक-एक पल लहू से
टूटा था मैं क्षण-क्षण इन्हे जोड़ने
खींच डाली थी मैंने लक्ष्मण रेखा ताकि
इस स्वल्प रेखा के दायरे में
पा सकूं नियंत्रण रिश्तों पर
पर मैं हकीकत से अनजान
करता रहा पैरवी रिश्तों की
मैं नहीं जानता था रिश्तों का विस्तार
उनका असीमित संसार
रिश्ते टूटते हैं बनते हैं
बनते हैं टूटते हैं
रिश्तों में ठहराव
अंत का परिचायक है
शायद इसलिए बुन लिए गए यहॉं भी
नए रिश्ते
पुराने रिश्तों की कब्र पर।