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रोशनी / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
हिमालय की काँख में भी
जल सकती है
अगर हो;
जरूरी तो आग है!
सूर्य की बपौती नहीं है
दियासिलाई के सिरे
पर भी सम्भव है!
क्या कबीर
किताबों से पटे, जिन्दगी से कटे
मिमियाते मदरसों में/ भर्ती ले ले?
क्या जरूरी है, कि पहलवान
दण्ड अखाड़े में ही पेले?
बुद्ध की नाचीज मुर्दे ने
वह कह दिया,
जो सम्भव नहीं होता
धर्माचार्यों की पीढ़ियों से!
रोशनी
रेलिंग पकड़कर नही उतरती
और न सीढ़ियों से!