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लड़की / अमरजीत कौंके
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बचपन से यौवन का
पुल पार करती
कैसे
गौरैया की तरह
चहकती है लड़की
घर में दबे पाँव चलती
भूख से बेखबर
स्कूल में बच्चों के
नए-नए नाम रखती
गौरेया लगती है
लड़की
अभी उड़ने के लिए
पर तौलती
और दो-चार वर्षों में
लाल चुनरी में लिपटी
सखियों के झुण्ड में घिरी
ससुराल जाएगी लड़की
क्या कायम रह पाएगी उसकी
यह तितलियों-सी शोखी
और यह गुलाबी-सी मुस्कान
गृहस्थ की तमाम
कठिनाइयों के बीच
बचा के रख पाएगी क्या
वह अपनी सारी
मासूमियत?
आने वाले वर्षों से बेख़बर
कैसे गौरैया की तरह
चहकती है लड़की।