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लाठी / हरिओम राजोरिया

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लाठियाँ बजाने पर भी
कविता होनी चाहिए

कहाँ-कहाँ बजी लाठी
किस-किस पर बजी
देश भर में बजी
ग़रीब-ग़ुरबों पर बजती आई है
ग़रीब -ग़ुरबों पर ही बजी

दौड़ा-दौड़ा कर बजी
मुर्गा बनाकर बजी
ज़मीन पर लिटाकर बजी
देखने वाले तक की रूह काँप गई
ऐसी जबर लहरा के बजी

पीटने वाले को सम्मान मिला
पिटने वाले को बदले में ज्ञान मिला
धीरे-धीरे हुआ इस परम्परा का विकास
देश भर में हुआ लाठी का प्रकाश
विश्वविद्यलय लाठियों पर जाकर टँग गए
रोग से लड़ रहे नागरिकों के
रास्ते में आ गईं लाठियाँ
निर्दोष नागरिकों की पीठ पर जब बरसीं
तो इतिहास बन गईं लाठियाँ

नागरिक समाज लाठियों के नीचे दबा था
लठ्ठम - लट्ठ का हुआ नाच
लाठियाँ स्वर लहरियों पर थिरकीं
कला - संस्कृति के रास्तों पर
लगा दिया गया लाठियों का पहरा
पिटाई की प्रस्तुतियों का हुआ भव्य आयोजन
हास्य अभिनेताओं की भी विषयवस्तु बनीं लाठियाँ

देश भर में हुआ लाठी युग का आगाज़
नागरिक होने का जमकर हुआ उपहास
चालाकी से लाठी को मिला सम्मान
सत्ता की मक्कारी का
लाठी ही थी एक बड़ा प्रमाण
साधारण घरों के लोग थे पीटने वाले

साधारण घरों के नागरिक थे पिटने वाले
लाठियों की मार ने रच दिया इतिहास
लाठियों की कलंक कथाओं पर
मीडिया हाउसों का रहा बायकाट
सरकार में कुछ लोग बोले कि
ज़रूरी हो जाता है ऐसा करना
मजबूर और परेशान लोगों को पीटकर ही
व्यवस्था बनाई जाती है
जो कुछ भी हुआ देशहित में हुआ
देशहित में देश के पक्ष में
इस नए लाठी युग का स्वागत है ।