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लापरवाह / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
तुम्हें बार-बार याद दिलाया गया
फिर भी तुमने अपना काम पूरा नहीं किया
हर बार तुम्हें लगा समय अभी भारी है
इसके हल्का होते ही पूरा कर लूंगा
लेकिन जब समय हल्का हुआ
लगा अभी हल्के-हल्के काम ही किये जाए
इनमें अधिक आसानी होती है,
कठिन काम सारी नसों को खींचकर रख देते हैं ।
इस तरह से कठिन और जरूरी कामों की
एक लंबी श्रृंखला बनती गयी
और अब इनका बोझ इतना बढ़ गया
लगता था मेज टूट जाएगी,
एक डर हावी हो जाता था इसके पास बैठते ही।
इधर, सरल कामों के निपटारे हो ही रहे थे
उधर, कठिन काम थोड़े और बढ़ गए
धागे का खिंचाव शीर्ष पर था
पछतावा चारों ओर आंखें खोले बैठा था
समय पर काम न किये जाने के परिणाम
शुरु हो गए थे आने
और उनके दंड से भयभीत मन
अब तो कोई भी काम नहीं कर पा रहा था।