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लेखनी से / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
- लेखनी मेरी !
- समय-पट पर चलो ऐसी कि जिससे
- त्रास्त जर्जर विश्व का
- फिर से नया निर्माण हो !
- क्षत, अस्थि-पंजर,
पस्त-हिम्मत - मनुज की सूखी शिराओं में
- रुधिर-उत्साह का संचार हो !
- ओ लेखनी मेरी, चलो !
- साये हुए हैं जो
- उन्हें उगते दिवाकर की ख़बर दो !
- और पथ में जो रुके
- उनको नयी ज्योतित डगर दो !
- काफ़िला जो
- रेत के नीचे दबा बेचैन है
- उसे सतत आकाश-आरोहणमयी
- नव-शक्ति दो !
- तेवान, गोआ की ज़मी को मुक्ति दो !
- भयभीत जो
- उसको सबल विश्वास दो !
- रोते हुए मुख पर
- रुपहला हास दो !
- ओ लेखनी मेरी ! चलो,
- जिससे कि दकियानूस-दुनिया के
- सभी दृढ़ लौह बंधन टूट जाएँ,
- और संस्कृति-सभ्यता की मूर्तियाँ सब
- आततायी के विषैले क्रूर चंगुल से
- सदा को छूट जाएँ !
- ध्वंस पर
- अभिनव-सृजन-आह्नान दो,
- हर आदमी के कंठ में
- श्रम का सबल मधु गान दो !
- प्रत्येक उर में
- प्यार का सागर भरो,
- धुँधले नयन में
- रोशनी घर-घर भरो