भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्तमान / नवीन दवे मनावत
Kavita Kosh से
वर्तमान को इतना
सारगर्भित बनाओं
ताकि अनुसरण कर सके भविष्य
जैसे हम करते हैं
बेहतरीन अतीत के दर्शन
चौपालों और संवेदनाओं के इर्द-गिर्द।
हम वर्तमान को
संस्कार की सीढियों पर ले जाए
जिसका अनुभव कर सके भविष्य
मर्यादा, पुरूषार्थ, निष्ठा, आदि गुण
पल्लवित-पुष्पित करें
जो सीखे है, हमने अतीत से
रीति परंपरा निभाते हुए
बढे भविष्य की राह पर
ताकि नहीं कोस सके
हमे आगामी नव रक्तपल्लव
नहीं फटकारें
भविष्य के वयोवृद्ध वृक्ष
हमे छोडना होगा
एक संकल्प
उन प्रकृति का
जिसके आश्रित रहे हैं
भूत और वर्तमान
हम ऐसा वटवृक्ष रोपे
जो हर युग का आश्रय बने
करता रहे हरीत,
भरता रहे है ख्वाहिशों का पेट
इतना सारगर्भित बनाओं
वर्तमान को